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Thursday, January 2, 2020

चार दिनों का टेस्ट मैच- क्या नफा, क्या नुकसान

पार्था भादुड़ी, नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) को पांच से चार दिन का करने का विचार कर रही है। आईसीसी का उद्देश्य 2023 से कैलेण्डर को अधिक स्ट्रीमलाइन करने का है। हालांकि इसे लेकर क्रिकेटीय जगत में अलग-अलग तरह के विचार सामने आ रहे हैं। एक ओर ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर और उनके कोच हैं जो इस फैसले के पूरी तरह खिलाफ नजर आ रहे हैं। उनका मानना है कि एक दिन का खेल हटा देने से टाइम का महत्व बहुत बढ़ जाएगा और इससे खेल के प्रवाह पर असर पड़ेगा। खेल के तत्व पर इससे नकारात्मक असर पड़ेगा और टेस्ट कुल मिलाकर सीमित-ओवरों के खेल का एक लंबा प्रारूप बन कर रह जाएगा। वहीं, दूसरी ओर क्रिकेट के व्यावसायिक पहलू की बात करने वाले लोग हैं। उनका कहना है कि खेल में अलग-अलग वैरायटी होनी चाहिए। खेल को चलाने वाले लोगों ने सभी विचारों को 'परंपरागत' और 'शुद्धतावादी' कह कर नकार दिया है। हाल के समय में इन दोनों शब्दों को निराशावादी विचारों के रूप में देखा जाने लगा है चूंकि कई प्रशासक और प्रसारणकर्ता इस बात पर सहमत हैं कि नई टेस्ट चैंपियनशिप के साथ चार दिन के टेस्ट मैच, चीजों को फिर तरोताजा कर देंगे। इसे भी पढ़ें- यह सच है कि टेस्ट क्रिकेट को लेकर लोगों का आकर्षण अब कम हो रहा है। यह भी सच है कि अब अधिकतर टेस्ट मैच चार दिन या उससे भी पहले खत्म हो रहे हैं। हालांकि, कुछ मजबूत टीमों के मैच इसमें अपवाद हैं। टॉप तीन या चार देशों के मैचों को निर्णय तक पहुंचने में एक अधिक दिन लग रहा है। टेस्ट मैचों का पांच दिन से पहले खत्म होना एक समस्या है। पहला तो इसलिए क्योंकि टेस्ट मैच का आयोजन करवाना एक महंगा सौदा है। और इसके बदले में रिटर्न भी खास नहीं मिलता। आयोजकों को मुख्य रूप से शुरुआती दो-तीन दिन तक मैदान में आने वाले दर्शकों की चिंता होती है और बाकी का सारा आर्थिक समीकरण छोटे प्रारूपों के मैचों में आने वाले दर्शकों से संतुलित हो जाता है। इसके साथ ही टेस्ट मैच भी जड़ नहीं रहे हैं। इससे पहले, टेस्ट मैच तीन दिन, चार दिन या फिर 'टाइमलैस' भी हो चुके हैं। टेस्ट मैच अपने हिसाब से बदलते रहे हैं। इसमें टेस्ट मैच अथवा सीरीज के निर्णायक मुकाबले में 'डिजर्विंग' मजबूत टीम तय करने के लिए यथासंभव दिनों तक खेलते रहना शामिल रहा है। इसे भी पढ़ें- आईसीसी का तर्क है कि अगर टेस्ट मैचों को चार दिन का कर दिया जाता है तो इससे बचे वक्त से शेड्यूल का बेहतर प्रबंधन किया जा सकेगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि खिलाड़ियों को अधिक विश्राम दिया जाएगा बल्कि इसका फायदा टेस्ट क्रिकेट को भी मिलेगा। चार दिनों का टेस्ट मैच गुरुवार को शुरू हो गा और रविवार को समाप्त होगा। इससे न सिर्फ टिकटों की बिक्री बढ़ेगी बल्कि टीवी पर दर्शकों की संख्या में भी इजाफा होगा। हालांकि इन योजनाओं और बहस ने आधुनिक टेस्ट क्रिकेट के नए विरोधाभास को उजागर किया है। इस प्रारूप को भले ही कई लोग गैर-जरूरी समझते हों लेकिन यही प्रारूप मूलरूप से खेल की पहचान है। यह खेल को उसकी पूरी संभावनाओं के साथ लेकर चलता है। भले ही सीमित ओवरों के प्रारूप को कई दशक हो चुके हैं लेकिन टेस्ट अभी तक क्रिेकेट की धड़कन है। खिलाड़ियों से पूछिए, वे आपको बताएंगे कि आखिर टेस्ट क्रिकेट क्या है। 22 गज की पट्टी पर खेले जाने वाला इस खेल का उतार-चढ़ाव, जीवन के एक सबक की तरह है। इसमें खिलाड़ियों को शारीरिक और मानसिक हुनर परखने का पूरा मौका मिलता है। लंबे समय तक रणनीति बनाने और जुटे रहने का अवसर मिलता है जो किसी भी खेल के लिए खास है। जिसे 'डल मूवमेंट' कहा जाता है वह लंबे ताने-बाने का छोटा सा हिस्सा भर है। टेस्ट क्रिकेट जब पूरे शबाब पर हो तो इसके रोमांच का कोई सानी नहीं है। टेस्ट क्रिकेट जरूरी है इसलिए नहीं कि हर कोई इसकी तारीफ करता है, बल्कि यह प्रारूप अब व्यावसायिक विचारों और ऐतिहासिक विश्वसनीयता के बीच सही संतुलन बना चुका है। एक दिन का खेल हटा देने के बाद भी अगर मनमुताबिक नहीं हुईं तो इसमें और फेरबदल किया जाएगा, जैसे- हर चार दिवसीय टेस्ट मैच को पिंक-बॉल टेस्ट कर दिया जाएगा, जिसमें एक ट्वाइलाइट (सांझ) का सेशन होगा लेकिन इसमें प्रस्तावित 98 ओवर प्रति दिन का खेल भारतीय उपमहाद्वीप के लिहाज से कारगर नहीं होगा। शायद खेल से जुड़े लोगों को विचार करना चाहिए कि क्या बदलाव के पीछे उनकी वजह सही है। अगर आप ध्यान से देखें तो पाएंगे कि अधिक से अधिक टेस्ट मैच चार या कम दिनों में इसलिए समाप्त हो रहे हैं क्योंकि टेस्ट मैचों में अब अधिक नतीजे सामने आ रहे हैं। कम मैच ड्रॉ हो रहे हैं। क्या इसे एक मौके के तौर पर देखा जा रहा है? और अगर युवा पीढ़ी के लिए टेस्ट मैच काफी लंबे हैं तो क्या सिर्फ एक दिन का खेल हटा देने से कोई मदद मिलेगी? और अगर टेस्ट मैच फ्री टू एयर हों तो क्या आईसीसी इसे चार दिन का चाहेगी या पांच दिन का?


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